Posts

Showing posts from November, 2025

चेतना: भीतर जलती हुई वह रोशनी जिसे हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं

Image
हम रोज़ जिस दुनिया में घूमते हैं, वह बाहर से जितनी तेज़, चमकदार और शोरगुल वाली लगती है, भीतर से उतनी ही धुंधली और अनजानी रहती है। हम दूसरों के चेहरों को पहचान लेते हैं, आवाज़ें सुन लेते हैं, माहौल समझ लेते हैं—लेकिन अपने भीतर की आवाज़, अपने भीतर के अंधेरे और रोशनी को शायद ही कभी देखने की कोशिश करते हैं। इसी अंदरूनी दुनिया का असली नाम है चेतना । अजीब बात यह है कि चेतना कोई भारी-भरकम दार्शनिक शब्द नहीं है। यह कुछ ऐसा है जो हर इंसान में पल-पल धड़क रहा है। फिर भी, हम उसे तभी समझ पाते हैं जब जीवन हमें किसी मोड़ पर झकझोर कर खड़ा कर देता है—कभी किसी टूटन की वजह से, कभी किसी गहरी खुशी की वजह से, या कभी किसी ऐसी रात में जब नींद तो आती है पर मन नहीं मानता। चेतना उसी क्षण में दिखाई देती है, जब हम खुद से भागना छोड़ देते हैं। अक्सर लोग चेतना को किसी धार्मिक या आध्यात्मिक चश्मे से देखते हैं। लेकिन सच कहूँ तो, चेतना का धर्म से सीधा कोई लेना-देना नहीं है। यह किसी खास पोशाक, किसी मंत्र, किसी पुस्तक या किसी पहचान की गुलाम नहीं है। चेतना उस जागरूकता का नाम है जो हमें खुद को देखने की क्षमता देती है—साफ,...

ज़िंदगी की दौड़ में हम किससे भाग रहे हैं? – एक सच्ची, कच्ची और बिना बनावट की बात

Image
कभी कभी लगता है कि पूरी दुनिया किसी अदृश्य रेस में भाग रही है। कोई नहीं जानता मंज़िल क्या है, पर सबको डर है कि अगर रुक गए, तो पीछे रह जाएंगे। और मज़ेदार बात यह है कि इस रेस में किसी ने हिस्सा लेना चाहा भी नहीं था। बचपन में हमने इससे बहुत आसान चीज़ों के सपने देखे थे—खेलना, कुछ सीखना, गलतियाँ करना, खुद को समझना। लेकिन जैसे-जैसे बड़े हुए, लगता है जैसे किसी ने हमारे हाथ में एक स्क्रिप्ट पकड़ा दी और बोला—“बस इसे फॉलो करो, यही लाइफ़ है।” असल में, हम सब भाग तो रहे हैं… पर मंज़िल की तरफ नहीं। हम उन चीज़ों से भाग रहे हैं जिन्हें महसूस करने में डर लगता है—अपनी कमज़ोरियों से, अपने डर से, अपने सच्चे सच से। बाहर से लगता है कि हम career, पैसे या stability के पीछे भाग रहे हैं, लेकिन भीतर की हकीकत कुछ और है। हम बस खुद को distract कर रहे हैं ताकि अपनी अधूरी बातों, अधूरे रिश्तों और अधूरी उम्मीदों का सामना न करना पड़े। लोग बोलते हैं कि ज़िंदगी complicated है। लेकिन सच्चाई ये है कि लाइफ़ उतनी complicated नहीं होती—हम खुद उसे उलझा देते हैं। क्योंकि हम चीज़ों को जैसा है वैसा देखने की आदत खो चुके हैं। आजकल...

जीवन का सार .......

Image
हम लगातार किसी “अर्थ” की तलाश में जीते हैं, जैसे जीवन अपने आप में पर्याप्त नहीं। हम मान लेते हैं कि कुछ बड़ा उद्देश्य होगा — कोई लक्ष्य, कोई दिव्यता, कोई मक़सद जो सबको जोड़ दे। पर जितना अधिक हम खोजते हैं, उतना ही जीवन फिसलता जाता है। सच तो यह है कि जीवन का कोई “सार” नहीं है जिसे बाहर कहीं पाया जा सके — वह तभी प्रकट होता है जब हम उस खोज को ही छोड़ देते हैं। मन को यह बात स्वीकार करना कठिन है क्योंकि मन को हमेशा दिशा चाहिए — कोई कारण, कोई गंतव्य, कोई कहानी। पर जीवन कहानी नहीं है, वह तो घटना है — हर सांस में घटता हुआ, हर पल में नष्ट होता हुआ। “सार” की भूख असल में “स्थायित्व” की भूख है जब हम कहते हैं कि हम जीवन का सार जानना चाहते हैं, तो हम दरअसल यह कह रहे होते हैं — “मुझे कुछ ऐसा चाहिए जो न बदले, जो स्थायी हो, जिस पर मैं टिक सकूँ।” हमारी सारी आध्यात्मिकता, सारे धर्म, सारे दर्शन इसी भय से जन्मे हैं — अस्थिरता के भय से। हम मृत्यु से डरते हैं, इसलिए अमरता की बातें करते हैं। हम शून्य से डरते हैं, इसलिए ईश्वर की कल्पना करते हैं। हम अर्थहीनता से डरते हैं, इसलिए अर्थ रचते हैं।...