चेतना: भीतर जलती हुई वह रोशनी जिसे हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं
हम रोज़ जिस दुनिया में घूमते हैं, वह बाहर से जितनी तेज़, चमकदार और शोरगुल वाली लगती है, भीतर से उतनी ही धुंधली और अनजानी रहती है। हम दूसरों के चेहरों को पहचान लेते हैं, आवाज़ें सुन लेते हैं, माहौल समझ लेते हैं—लेकिन अपने भीतर की आवाज़, अपने भीतर के अंधेरे और रोशनी को शायद ही कभी देखने की कोशिश करते हैं। इसी अंदरूनी दुनिया का असली नाम है चेतना । अजीब बात यह है कि चेतना कोई भारी-भरकम दार्शनिक शब्द नहीं है। यह कुछ ऐसा है जो हर इंसान में पल-पल धड़क रहा है। फिर भी, हम उसे तभी समझ पाते हैं जब जीवन हमें किसी मोड़ पर झकझोर कर खड़ा कर देता है—कभी किसी टूटन की वजह से, कभी किसी गहरी खुशी की वजह से, या कभी किसी ऐसी रात में जब नींद तो आती है पर मन नहीं मानता। चेतना उसी क्षण में दिखाई देती है, जब हम खुद से भागना छोड़ देते हैं। अक्सर लोग चेतना को किसी धार्मिक या आध्यात्मिक चश्मे से देखते हैं। लेकिन सच कहूँ तो, चेतना का धर्म से सीधा कोई लेना-देना नहीं है। यह किसी खास पोशाक, किसी मंत्र, किसी पुस्तक या किसी पहचान की गुलाम नहीं है। चेतना उस जागरूकता का नाम है जो हमें खुद को देखने की क्षमता देती है—साफ,...