ज़िंदगी की दौड़ में हम किससे भाग रहे हैं? – एक सच्ची, कच्ची और बिना बनावट की बात

A man running for purpose beneath a swirling starry sky, painted in vibrant Van Gogh style brushstrokes."

कभी कभी लगता है कि पूरी दुनिया किसी अदृश्य रेस में भाग रही है। कोई नहीं जानता मंज़िल क्या है, पर सबको डर है कि अगर रुक गए, तो पीछे रह जाएंगे। और मज़ेदार बात यह है कि इस रेस में किसी ने हिस्सा लेना चाहा भी नहीं था। बचपन में हमने इससे बहुत आसान चीज़ों के सपने देखे थे—खेलना, कुछ सीखना, गलतियाँ करना, खुद को समझना। लेकिन जैसे-जैसे बड़े हुए, लगता है जैसे किसी ने हमारे हाथ में एक स्क्रिप्ट पकड़ा दी और बोला—“बस इसे फॉलो करो, यही लाइफ़ है।”

असल में, हम सब भाग तो रहे हैं… पर मंज़िल की तरफ नहीं। हम उन चीज़ों से भाग रहे हैं जिन्हें महसूस करने में डर लगता है—अपनी कमज़ोरियों से, अपने डर से, अपने सच्चे सच से। बाहर से लगता है कि हम career, पैसे या stability के पीछे भाग रहे हैं, लेकिन भीतर की हकीकत कुछ और है। हम बस खुद को distract कर रहे हैं ताकि अपनी अधूरी बातों, अधूरे रिश्तों और अधूरी उम्मीदों का सामना न करना पड़े।

लोग बोलते हैं कि ज़िंदगी complicated है। लेकिन सच्चाई ये है कि लाइफ़ उतनी complicated नहीं होती—हम खुद उसे उलझा देते हैं। क्योंकि हम चीज़ों को जैसा है वैसा देखने की आदत खो चुके हैं। आजकल हर इंसान खुद से भी झूठ बोलता है।
हाँ, ये सुनने में खराब लगेगा, पर सच है।
हम वो इंसान बनकर जीते हैं जो दुनिया को acceptable लगे। इसका नतीजा ये होता है कि रात को सोने से पहले मन में एक ही सवाल घूमता है—“क्या यही हूँ मैं?”

हर कोई खुश दिखना चाहता है, पर हर कोई थका हुआ है। किसी को career का भार है, किसी को family की चिंता, किसी को relationship की उलझनें, और सबसे ज़्यादा लोग अपने ही दिमाग से परेशान हैं। दुनिया कहती है “positive रहो”, लेकिन honest बात यह है कि हर समय positive रहना practically possible ही नहीं है। ये इंसान होने के खिलाफ जाता है।
फिर भी, हम दूसरों के सामने अपने दर्द को “overthinking” कहकर छोटा करते रहते हैं। क्योंकि society ने हमें यह सिखा दिया है कि कमज़ोरी दिखाना गलत है।
नतीजा?
हर दूसरा इंसान अंदर ही अंदर टूट रहा है, पर बाहर सिर्फ हँस रहा है।

हम जिंदगी में clarity चाहते हैं, लेकिन खुद से सच बोलने की हिम्मत नहीं रखते। हम relationship चाहते हैं, पर खुद को भी ठीक से समझ नहीं पाते। हम success चाहते हैं, पर अपनी ही habits को control नहीं कर पाते।
और सबसे बड़ा झूठ तो यह है कि—
हम सोचते हैं कि दूसरों की life sorted है।
Social media ने हमें इस झूठ में और भी उलझा दिया है।
हम दूसरों की curated life देखकर अपने real life से नफरत करने लगते हैं।

लेकिन तुम जानते हो अंदर का असली truth क्या है?
हर इंसान गड़बड़ियों से भरा हुआ है।
हर कोई किसी ना किसी level पर confused है।
हर किसी की life में कुछ ऐसा है जिसे वो ठीक नहीं कर पा रहा।
और हर कोई यही सोच रहा है कि बाकी लोग उससे कहीं better हैं।

असल में, हम एक-दूसरे के दर्द को नहीं देखते क्योंकि हर कोई अपने दर्द में इतना उलझा है कि दूसरों के लिए जगह ही नहीं बचती। लोग सुनते हैं, पर समझते नहीं। सलाह देते हैं, पर खुद follow नहीं करते।
और irony देखो—
हम खुद भी कभी-कभी दूसरों से वही उम्मीदें रखते हैं, जो हम खुद पूरी नहीं कर सकते।

ज़िंदगी की सबसे बड़ी problem ये नहीं है कि लोग तुम्हें नहीं समझते—
सबसे बड़ी problem ये है कि हम खुद को समझने की कोशिश भी नहीं करते।
हम emotions को दबाते हैं, डर को छुपाते हैं, और feelings को मज़ाक में बदल देते हैं।
जो भी कमज़ोरी लगे, उसे हम या तो ignore कर देते हैं या किसी distraction में दबा देते हैं।

लेकिन सच्चाई ये है कि भाग कर कोई भी लड़ाई कभी जीती नहीं जाती।
तुम कितनी भी देर तक भागो, एक समय आता है जब तुम्हें खुद का सामना करना ही पड़ता है।
और वही असली मोड़ होता है—लाइफ़ का turning point।
वो पल uncomfortable होता है, painful होता है, लेकिन सबसे ज़्यादा ज़रूरी भी होता है।

हम खोए हुए इसलिए भी महसूस करते हैं क्योंकि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ हर कोई perfect दिखने की कोशिश में लगा है।
पर जो इंसान ईमानदारी से अपनी imperfections को स्वीकार कर लेता है—
वही असली meaning में free होता है।
क्योंकि वो दूसरों के judgement से नहीं डरता, और न ही खुद को prove करने की जरूरत महसूस करता है।

हमारी सबसे बड़ी लड़ाई दुनिया से नहीं है।
हमारी सबसे बड़ी लड़ाई खुद से है—
अपनी expectations से, अपने comfort zone से, अपनी आदतों से, और उस version से जिसे हम बार-बार बनने में fail हो जाते हैं।

जब तुम अपनी weaknesses को face करने लगो,
जब तुम खुद को दूसरों से compare करना बंद कर दो,
जब तुम खुद से uncomfortable सच बोलना शुरू कर दो—
तभी जिंदगी थोड़ा-थोड़ा साफ दिखने लगती है।

सच तो ये है कि लाइफ़ किसी भी दिन perfect नहीं होगी।
लेकिन कम से कम इतनी honest तो हो सकती है कि तुम्हें खुद से भागने की ज़रूरत ही न पड़े।
तुम्हारी life का असली turnaround तब शुरू होता है जब तुम दुनिया के शोर से हटकर खुद की असल आवाज़ सुनना शुरू करते हो। और वो आवाज़ कहती है—
तुम थक चुके हो किसी और की तरह बनने की कोशिश में।
अब खुद बनने की कोशिश करो।

ज़िंदगी आसान तब होती है जब तुम दुनिया को impress करना बंद कर देते हो और खुद के सच को accept कर लेते हो।
In the end, तुम वही इंसान बनते हो जिसे हर दिन खुद के साथ रहना है—
तो कम से कम वो इंसान ऐसा हो जिसे तुम respect कर सको,
na ki वो mask जो सिर्फ दूसरों को खुश करने के लिए पहना है।

Comments

  1. Jivan dekhne ka najariya badal diya apne , thankyou

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