नवरात्रि के चौथे दिन की देवी – माँ कूष्माण्डा : भीतर की मुस्कान से ब्रह्माण्ड का निर्माण

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नवरात्रि का प्रत्येक दिन एक विशेष शक्ति, एक विशेष ऊर्जा और एक गहन संदेश लेकर आता है। चौथे दिन की देवी हैं माँ कूष्माण्डा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब इस सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, चारों ओर केवल अंधकार ही अंधकार था, तब माँ कूष्माण्डा ने अपनी दिव्य मुस्कान से पूरा ब्रह्माण्ड रच डाला। यही कारण है कि इन्हें *सृष्टि की आदिशक्ति* कहा जाता है।


लेकिन यदि हम इस कथा को केवल पौराणिक दृष्टि से देखें तो यह हमारे जीवन से दूर लग सकती है। असली गहराई तब मिलती है जब हम इसे अपने जीवन और आध्यात्मिक यात्रा से जोड़कर समझते हैं। माँ कूष्माण्डा केवल एक देवी का स्वरूप नहीं हैं, बल्कि यह हमें यह याद दिलाती हैं कि हर इंसान के भीतर सृजन की शक्ति है, बस उसे जागृत करने की ज़रूरत है।


कूष्माण्डा शब्द का अर्थ और प्रतीक


‘कूष्माण्ड’ शब्द अपने आप में रहस्यमयी है। इसका अर्थ कुम्हड़े (Pumpkin) से जुड़ा है, जिसे भारतीय परंपरा में ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। यह फल देखने में साधारण लगता है, लेकिन इसमें ऊर्जा संचित करने की अद्भुत क्षमता होती है। यही कारण है कि इसे माँ की अपार शक्ति और असीम ऊर्जा का प्रतीक माना गया।


यह हमें सिखाता है कि साधारण दिखने वाली चीज़ों में भी असाधारण ऊर्जा छिपी होती है। जैसे एक सामान्य मुस्कान भी किसी के जीवन में नया उजाला भर सकती है, वैसे ही हमारे छोटे-छोटे कर्म भी ब्रह्माण्ड में बड़ी तरंगें पैदा कर सकते हैं।


ब्रह्माण्ड की रचना और हमारी आंतरिक शक्ति


कहा जाता है कि माँ कूष्माण्डा ने अपनी हँसी और ऊर्जा से अंधकार को प्रकाश में बदल दिया। यही संदेश हमारे जीवन के लिए भी है। जब जीवन कठिनाइयों से भरा हो, जब चारों तरफ अंधकार ही अंधकार लगे, तब हमें यह याद रखना चाहिए कि भीतर की एक हल्की-सी मुस्कान, एक छोटा-सा सकारात्मक विचार, परिस्थितियों को बदलने की शक्ति रखता है।


हम अक्सर सोचते हैं कि बड़ा बदलाव लाने के लिए बड़ी शक्ति चाहिए, लेकिन माँ का स्वरूप हमें याद दिलाता है कि ब्रह्माण्ड का आरंभ भी एक छोटी सी मुस्कान से हुआ था। हमारे जीवन का ब्रह्माण्ड भी हमारी मुस्कान, सकारात्मक सोच और विश्वास से शुरू हो सकता है।


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आध्यात्मिक दृष्टि से सीख


आध्यात्मिक रूप से माँ कूष्माण्डा हमें यह सिखाती हैं कि **सृजन भीतर से शुरू होता है**। अगर हमारे विचार शुद्ध हैं, भावनाएँ संतुलित हैं और कर्म प्रेम से भरे हैं, तो बाहर की दुनिया भी वैसी ही बनती जाएगी।


* यदि हम भीतर अंधकार पालेंगे – नकारात्मक सोच, क्रोध और ईर्ष्या – तो हमारा जीवन भी उसी रंग में ढल जाएगा।

* लेकिन यदि हम भीतर प्रकाश जगाएँ – प्रेम, कृतज्ञता और आनंद – तो वही प्रकाश बाहर तक फैलेगा।


आध्यात्मिक साधना, ध्यान और माँ की उपासना का यही सार है – अपने भीतर छिपे हुए सृजनशील प्रकाश को पहचानना और उसे हर पल सक्रिय रखना।


जीवन में कैसे उतारें माँ कूष्माण्डा की शिक्षा


1. मुस्कान की शक्ति अपनाएँ – जीवन कितना भी कठिन क्यों न हो, एक सच्ची मुस्कान से परिस्थितियाँ हल्की हो जाती हैं।

2. सकारात्मक ऊर्जा जगाएँ– सुबह उठकर कृतज्ञता के भाव से दिन शुरू करें। यह ऊर्जा पूरे दिन को प्रकाशमय बना देती है।

3. छोटे कर्मों में सृजन खोजे – जैसे किसी को प्रोत्साहित करना, मदद करना, या केवल अच्छे शब्द कहना। यही छोटे कर्म ब्रह्माण्ड                                        में बड़ी तरंगें पैदा करते हैं।

4. ध्यान और साधना करें – ध्यान हमें भीतर के अंधकार से मुक्त कर, आंतरिक प्रकाश तक ले जाता है।

5. सादगी को स्वीकारें – जैसे कुम्हड़ा साधारण दिखता है पर ऊर्जा से भरा है, वैसे ही सादगी में ही असली ताक़त छिपी होती है।


आधुनिक जीवन से जुड़ाव


आज की व्यस्त और तनावपूर्ण ज़िंदगी में लोग अक्सर यह सोचते हैं कि आध्यात्मिकता केवल मंदिरों और ग्रंथों तक सीमित है। लेकिन माँ कूष्माण्डा का संदेश बताता है कि आध्यात्मिकता हमारे रोज़मर्रा के जीवन में ही है।


:- ऑफिस के तनाव के बीच भी यदि हम हल्की मुस्कान रख पाते हैं, तो हम अपने सहकर्मियों का माहौल बदल सकते हैं।

:- परिवार में मतभेद हों, तो एक मीठा शब्द ही रिश्तों को नया जीवन दे सकता है।

:- मुश्किल समय में भी अगर हम आशावादी बने रहें, तो हमारी सकारात्मकता ही रास्ता दिखा देती है।

यानी माँ का संदेश है – "बाहर की परिस्थितियाँ बदलने का इंतज़ार मत कीजिए, पहले भीतर रोशनी जगाइए।"


उपासना और साधना


नवरात्रि के चौथे दिन भक्त माँ कूष्माण्डा की पूजा करते हैं। पूजा में ‘कूष्माण्डा स्तोत्र’ और ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ किया जाता है। लेकिन असली साधना केवल मंत्रों तक सीमित नहीं है। असली साधना है – **माँ की ऊर्जा को अपने जीवन में उतारना**।


अगर हम प्रतिदिन कुछ मिनट ध्यान करें, साँसों के साथ अपने भीतर की ऊर्जा को महसूस करें, और अपने हर कर्म को सकारात्मक भाव से करें – यही सच्ची उपासना है।


निष्कर्ष


माँ कूष्माण्डा केवल पौराणिक देवी नहीं, बल्कि जीवन का एक गहरा प्रतीक हैं। वे हमें यह सिखाती हैं कि सृजन की शुरुआत बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर से होती है। जब हम अपने भीतर की ऊर्जा को पहचानते हैं, जब हम मुस्कुराना सीखते हैं, जब हम छोटी-सी सकारात्मकता जगाते हैं – तभी हम अपने जीवन का नया ब्रह्माण्ड रच पाते हैं।


नवरात्रि के इस चौथे दिन, आइए हम यह संकल्प लें कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, हम अपने भीतर की मुस्कान और प्रकाश को जीवित रखेंगे। यही माँ कूष्माण्डा का सच्चा संदेश है, और यही हमारे जीवन का सबसे बड़ा आध्यात्मिक साधन।


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