माँ चंद्रघंटा - नवरात्रि के तीसरे दिन की देवी, शक्ति और शांति का संगम
नवरात्रि का पर्व हर साल हमें यह अवसर देता है कि हम अपने जीवन में देवी शक्ति के विभिन्न स्वरूपों को याद करें और उनसे प्रेरणा लें। यह नौ दिनों की साधना केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन के हर पहलू से जुड़ी हुई है। नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। यह रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में शक्ति और शांति का संतुलन कितना महत्वपूर्ण है।
माँ चंद्रघंटा का स्वरूप
माँ चंद्रघंटा के मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित रहता है, जिसकी वजह से उन्हें यह नाम मिला है। उनका स्वरूप अत्यंत भव्य और शांतिमय है। वे दस भुजाओं वाली हैं और हर भुजा में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं। उनका वाहन सिंह है, जो साहस और निडरता का प्रतीक माना जाता है।
पहली नज़र में माँ का यह रूप योद्धा देवी जैसा लगता है, लेकिन जब ध्यान से देखा जाए तो इसमें गहरी शांति और करुणा भी झलकती है। उनके माथे का चंद्र एक संदेश देता है – जीवन में चाहे कितनी भी अंधकारमय परिस्थितियाँ क्यों न हों, शांति और प्रकाश हमेशा संभव है।
माँ चंद्रघंटा की कथा
पुराणों के अनुसार, जब असुरों का आतंक बढ़ गया था, तब देवताओं की प्रार्थना पर माँ दुर्गा ने चंद्रघंटा रूप धारण किया। यह रूप इतना प्रचंड और तेजस्वी था कि दुष्ट शक्तियाँ काँप उठीं। सिंह पर सवार माँ ने अपने शस्त्रों से युद्ध किया और राक्षसों का संहार कर संसार में शांति स्थापित की।
इस कथा के पीछे केवल धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि जीवन का एक गहरा संदेश भी छुपा है। जब हमारे जीवन में समस्याएँ और कठिनाइयाँ बढ़ जाती हैं, तो हमें भी माँ की तरह अपने भीतर की हिम्मत और शक्ति को जगाना पड़ता है। तभी हम नकारात्मकता और भय पर विजय पा सकते हैं।
पूजन और महत्व
नवरात्रि के तीसरे दिन भक्त माँ चंद्रघंटा की पूजा करते हैं। इस दिन सुनहरी या पीली वस्त्र पहनकर पूजा करने का विशेष महत्व है। पूजा में घंटी बजाना, धूप-दीप जलाना और शंख ध्वनि करना शुभ माना जाता है।
भक्तों का विश्वास है कि माँ चंद्रघंटा की कृपा से व्यक्ति के जीवन से भय और चिंता समाप्त हो जाते हैं। मानसिक शांति, आत्मविश्वास और साहस बढ़ता है। साथ ही, जिन लोगों को बार-बार नकारात्मक विचार सताते हैं, उनके लिए यह दिन विशेष रूप से फलदायी होता है।
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माँ चंद्रघंटा से जुड़ा जीवन का संदेश
आज की तेज़-तर्रार जिंदगी में हर इंसान किसी न किसी रूप में तनाव, असुरक्षा और भय का सामना कर रहा है। कभी करियर की चिंता, कभी परिवार की जिम्मेदारी, तो कभी भविष्य का डर। ऐसे समय में माँ चंद्रघंटा का स्वरूप हमें यह सिखाता है कि जीवन का हर युद्ध लड़ा जा सकता है, बशर्ते हम भीतर की शक्ति को पहचानें।
उनका वाहन सिंह हमें याद दिलाता है कि डर पर विजय पाना ही आगे बढ़ने की कुंजी है। और उनका अर्धचंद्र हमें बताता है कि चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, हमारे भीतर शांति और धैर्य की शक्ति हमेशा मौजूद है।
आधुनिक जीवन से जुड़ाव
अगर हम गहराई से सोचें, तो माँ चंद्रघंटा की पूजा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है। यह आत्म-अनुशासन और आत्मविश्वास की साधना है। उदाहरण के लिए –
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जब कोई विद्यार्थी परीक्षा की तैयारी करता है, तो उसे भी अपने भीतर के डर को जीतना पड़ता है।
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जब कोई व्यवसायी नई पहल करता है, तो उसे असफलता के भय को किनारे रखना पड़ता है।
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जब कोई इंसान रिश्तों में संघर्ष झेलता है, तो उसे धैर्य और समझदारी से काम लेना पड़ता है।
इन सभी स्थितियों में माँ चंद्रघंटा का संदेश हमारे काम आता है। वे हमें सिखाती हैं कि डर से भागने की बजाय उसका सामना करना ही सही रास्ता है।
माँ चंद्रघंटा और आंतरिक साधना
ध्यान (Meditation) के साधकों के लिए माँ चंद्रघंटा का महत्व और भी गहरा है। कहा जाता है कि उनका स्वरूप "आध्यात्मिक जागरण" का प्रतीक है। जब साधक ध्यान में गहराई से उतरता है, तो उसके भीतर की बेचैनी शांत हो जाती है और वह दिव्य शांति का अनुभव करता है। यही स्थिति है, जहाँ शक्ति और शांति का मिलन होता है।
एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण
बहुत से लोग बताते हैं कि जब वे माँ चंद्रघंटा की पूजा करते हैं, तो उन्हें एक अजीब-सी शांति महसूस होती है। मानो किसी ने उनके मन के बोझ को हल्का कर दिया हो। यह अनुभव केवल धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी समझा जा सकता है। जब हम किसी बड़े रूप को स्मरण करते हैं, तो हमें अपने भीतर भी साहस और संतुलन का अनुभव होता है।
शायद इसी वजह से नवरात्रि के तीसरे दिन को "भय और तनाव से मुक्ति" का दिन कहा जाता है।
निष्कर्ष
माँ चंद्रघंटा का स्वरूप हमें यह याद दिलाता है कि जीवन शक्ति और शांति का संगम है। उनके सिंह वाहन से हमें साहस की प्रेरणा मिलती है और उनके अर्धचंद्र से धैर्य और संतुलन का संदेश।
आज की व्यस्त जिंदगी में, जब हर कोई चिंता और डर से घिरा हुआ है, माँ चंद्रघंटा की आराधना हमें भीतर से मजबूत बनाती है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और सकारात्मकता का अभ्यास है।
नवरात्रि का तीसरा दिन हमें यह सिखाता है कि हर कठिनाई एक अवसर है – अपने साहस को पहचानने और अपने भीतर की शांति को जगाने का।
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