हमें लोगों की Validation की भूख क्यों होती है?
कभी गौर किया है, जब कोई हमारी तारीफ़ करता है तो भीतर एक मीठी सी लहर उठती है, लेकिन जैसे ही कोई आलोचना कर देता है, वही मन बेचैन हो उठता है। यह जो दूसरों की स्वीकृति की भूख है, जिसे हम validation कहते हैं, वह आधुनिक जीवन की सबसे गहरी जड़ बन चुकी है। लेकिन असल सवाल यह है कि हमें दूसरों की validation की ज़रूरत क्यों पड़ती है? क्या हम खुद को देखने, महसूस करने या स्वीकार करने में इतने अक्षम हो गए हैं कि अपनी कीमत तय करने के लिए हमें किसी और की नज़रों की ज़रूरत पड़ती है?
Validation का मतलब होता है किसी और के approval से अपनी value तय करना। यह धीरे-धीरे हमारी पहचान का हिस्सा बन जाता है। हम भूल जाते हैं कि असली स्वीकृति भीतर से आनी चाहिए, बाहर से नहीं। मनुष्य की चेतना मूल रूप से स्वतंत्र है, लेकिन समाज ने हमें बचपन से ही यह सिखाया है कि “अच्छा वही है जो दूसरों को पसंद आए।” इसी conditioning ने हमें असली से बनावटी बना दिया है। हम हर पल किसी मंच पर अभिनय कर रहे हैं ताकि कोई हमें notice करे, approve करे, सराहे। लेकिन भीतर हम जानते हैं कि यह approval कभी स्थायी नहीं होता, यह बस कुछ पलों की राहत है, कोई स्थायी शांति नहीं।
जब हम बचपन में सिर्फ तब प्यार या ध्यान पाते हैं जब हम “अच्छा व्यवहार” करते हैं, तब हमारे मन में एक गहरी मान्यता बैठ जाती है — “मैं तभी lovable हूँ जब मैं दूसरों को खुश रखूँ।” यहीं से validation की craving शुरू होती है। धीरे-धीरे यह craving identity का हिस्सा बन जाती है। हर compliment एक नशे की तरह काम करता है, momentary high देता है, लेकिन dependency बढ़ाता है। यानी दूसरों की सराहना एक subtle addiction है जो हमें खुद से और दूर ले जाती है। यह addiction इतना खतरनाक है कि एक दिन हम सच बोलने से भी डरने लगते हैं, सिर्फ इसलिए कि कहीं कोई नापसंद न कर दे।
आध्यात्मिक दृष्टि से validation की यह भूख आत्म-अज्ञान की निशानी है। जो व्यक्ति खुद को नहीं जानता, वही दुनिया से पूछता है — “मैं कौन हूँ?” जब व्यक्ति अपने असली स्वरूप से अनजान होता है, तो वह दूसरों की नज़रों से खुद को परिभाषित करने लगता है। जो भीतर से खाली है, वही बाहर से भरा जाने की कोशिश करता है। और यह कोशिश कभी पूरी नहीं होती, क्योंकि बाहर से मिलने वाला approval स्थायी नहीं, अस्थायी है। जब तुम भीतर से पूर्ण हो जाते हो, तो तुम्हें किसी की स्वीकृति की ज़रूरत नहीं पड़ती। फिर तुम सिर्फ “होने” में आनंद पाते हो, “दिखाने” में नहीं। यही ध्यान (meditation) का सार है — दूसरों की नज़रों से हटकर खुद की आँखों से खुद को देखना।
समाज चाहता है कि तुम वैसे बनो जैसे वह देखना चाहता है, लेकिन आत्मा चाहती है कि तुम वही बनो जो तुम वास्तव में हो। यही दो खिंचावों के बीच का संघर्ष इंसान के भीतर की बेचैनी का कारण है। Social media ने इस भूख को और गहरा बना दिया है। अब validation शब्दों में नहीं, likes, comments और followers में मापा जाता है। हर notification ego को सहलाती है, पर आत्मा को और खोखला कर देती है। हम सोचते हैं कि हम connect हो रहे हैं, लेकिन असल में disconnect हो रहे हैं — अपने आप से।
Validation की लत का सबसे खतरनाक असर यह है कि व्यक्ति authentic होना छोड़ देता है। वह सच बोलने से डरता है, असहमति जताने से डरता है, अलग दिखने से डरता है। उसके मन में हर समय बस एक ही सवाल घूमता रहता है — “लोग क्या सोचेंगे?” यह सवाल ही आध्यात्मिक गुलामी का प्रतीक है। जो व्यक्ति लोगों की सोच से मुक्त हो गया, वही सच्चे अर्थों में स्वतंत्र है। जब तुम भीतर से खुद को स्वीकार करते हो, तब validation की ज़रूरत खुद ही मिट जाती है। तब न किसी की प्रशंसा तुम्हें ऊपर उठाती है, न आलोचना नीचे गिराती है। तुम अपने अस्तित्व में स्थिर हो जाते हो, जैसे पर्वत हवा से नहीं हिलता।
आध्यात्मिक दृष्टि से इसका समाधान बाहर नहीं, भीतर है। Validation की भूख तब खत्म होती है जब व्यक्ति अपने अनुभवों, भावनाओं और अस्तित्व को बिना किसी तुलना के स्वीकार करना सीखता है। जब तुम अपने भीतर की आवाज़ सुनना शुरू करते हो, जब तुम दूसरों के शब्दों से ज़्यादा अपनी सच्चाई को महत्व देना शुरू करते हो, तब यह craving पिघलने लगती है। ध्यान, मौन, और self-awareness इसके वास्तविक उपाय हैं। जब तुम मौन में बैठते हो और खुद को बिना किसी मुखौटे के देखते हो, तब तुम पाते हो कि approval की ज़रूरत दरअसल ego की ज़रूरत थी, आत्मा की नहीं।
Validation की भूख कोई पाप नहीं है, यह सिर्फ एक संकेत है कि तुम अभी भी अपने असली स्वरूप से दूर हो। इसलिए इससे लड़ो नहीं, बल्कि इसे समझो। हर बार जब तुम दूसरों से approval खोजो, खुद से पूछो — “क्या मैं खुद को approve करता हूँ?” जब यह उत्तर “हाँ” में आए, तब समझो कि तुमने समाज से नहीं, खुद से प्रेम करना सीख लिया है। वही क्षण तुम्हारी आध्यात्मिक परिपक्वता की शुरुआत है। जब तुम्हें अपने भीतर की स्वीकृति मिल जाती है, तब validation की भूख स्वतः मिट जाती है, और तुम एक ऐसे जीवन में प्रवेश करते हो जहाँ न किसी की प्रशंसा तुम्हें उत्साहित करती है, न आलोचना दुख देती है — क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारी सच्ची पहचान किसी की नज़र में नहीं, तुम्हारे अपने अनुभव में है।

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