जीवन में पहले जैसी खुशी क्यों नहीं रही ?

बचपन की यादें हमेशा हमारे मन में एक रंगीन तस्वीर की तरह बसी रहती हैं, जहाँ हर पल एक नया एडवेंचर था और हर मुस्कान सच्ची थी। उस समय खुशियाँ किसी चीज़ पर निर्भर नहीं करती थीं; वे बस मौजूद थीं। सूरज की किरणों में, बारिश की बूंदों में, मिट्टी की खुशबू में – हर जगह खुशियाँ थीं। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, वह मासूमियत और सहज खुशी कहीं खो गई। क्यों? यही सवाल आज भी मेरे मन में गूंजता है।

बचपन की मासूमियत और खुशी का जादू

बचपन में हमारी दुनिया छोटी और सरल थी। ज़रूरतें सीमित थीं – सिर्फ खेलने, खाने और सोने की। उस समय मन पर कोई बोझ नहीं था, कोई चिंता नहीं थी। हम हर चीज़ को नए नज़रिए से देखते थे। एक रंगीन गुब्बारा, एक नया खिलौना, या एक तितली भी हमें घंटों खुश रख सकती थी।

हमारी भावनाएँ भी शुद्ध थीं। हम किसी से नफ़रत नहीं करते थे, किसी से ईर्ष्या नहीं करते थे। दिल में कोई छल-कपट नहीं था। सिर्फ़ प्यार करना और प्यार पाना जानते थे। यही वजह थी कि उस समय की खुशी सच्ची और टिकाऊ थी।

बदलते जीवन के साथ बदलती खुशी

जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, हमारी दुनिया बड़ी हुई। नई ज़िम्मेदारियाँ, नई उम्मीदें और नए रिश्ते हमारी ज़िंदगी में शामिल हुए। हमें लगा कि अब हमें और अधिक हासिल करना है। हम पैसों, बड़े घरों, महंगी गाड़ियों और ऊँची पोस्ट के पीछे भागने लगे।

लेकिन इस दौड़ में हम कहीं न कहीं खुद को खो बैठे। भूल गए कि सच्ची खुशी इन चीज़ों में नहीं होती। वह तो हमारे अंदर ही होती है। हम दूसरों से अपनी तुलना करने लगे, उनकी सफलता से जलने लगे और अपनी नाकामियों पर पछताने लगे।

आज की खुशी और कल की उम्मीद

आजकल हमारी खुशी बाहरी चीज़ों पर निर्भर हो गई है। सोशल मीडिया पर अपनी खुशी दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन असल में भीतर खालीपन होता है। दूसरों को खुश दिखाने के लिए बहुत कुछ करते हैं, पर खुद से खुश नहीं हो पाते।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम कभी खुश नहीं हो सकते। हम आज भी खुश हो सकते हैं, अगर सोच बदलें। खुशी किसी चीज़ में नहीं, वह हमारे अंदर है। हमें जीवन के छोटे-छोटे पलों का आनंद लेना सीखना होगा, और बचपन की तरह मासूम और सरल बनना होगा।

खुशी को फिर से पाने का रास्ता

छोटे-छोटे पलों में खुशी ढूँढें: एक कप चाय की चुस्की, सुबह की सैर, परिवार के साथ बिताया गया पल।
खुद को स्वीकार करें: अपनी खूबियों और कमियों के साथ खुद को प्यार करना सीखें।
दूसरों से तुलना बंद करें: हर इंसान की ज़िंदगी अलग होती है, इसलिए केवल अपनी ज़िंदगी पर ध्यान दें।
डिजिटल डिटॉक्स: सोशल मीडिया से थोड़ी दूरी बनाएँ और वास्तविक दुनिया का आनंद लें।
दयालुता और करुणा: दूसरों के प्रति दयालु होने से एक अलग तरह की खुशी मिलती है।

समय के साथ हम बदलते हैं, और हमारी खुशियों का रूप भी बदलता है। बचपन की सहज, मासूम खुशी वापस नहीं आ सकती, लेकिन हम एक नई, परिपक्व खुशी पा सकते हैं। यह खुशी शोर-शराबे वाली नहीं होगी, बल्कि शांत और गहरी होगी। यह अंदर से आएगी और हमें जीवन की हर चुनौती का सामना करने की हिम्मत देगी।

यही वह खुशी है, जिसे हम अपने आज और कल के लिए पैदा कर सकते हैं।

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