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Showing posts from August, 2025

गणपति बप्पा: हर दुःख के संहारक

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गणेश चतुर्थी का पर्व आते ही, हर तरफ एक नई ऊर्जा और उत्साह का संचार हो जाता है। ढोल-नगाड़ों की गूँज, मोदक की खुशबू और "गणपति बप्पा मोरया" की जय-जयकार... ये सब मिलकर एक ऐसा माहौल बनाते हैं, जहाँ हर मन प्रफुल्लित हो उठता है। पर क्या हमने कभी सोचा है कि इस उत्सव के पीछे का गहरा आध्यात्मिक अर्थ क्या है? क्यों गणपति जी को विघ्नहर्ता और दुःखहर्ता कहा जाता है? हमारे जीवन में दुःख और चुनौतियाँ आना स्वाभाविक है। कभी करियर की चिंता, कभी रिश्तों की उलझन, तो कभी स्वास्थ्य की परेशानी। इन सभी दुखों से निकलने का रास्ता हमें गणपति जी के आध्यात्मिक स्वरूप में मिलता है। वे सिर्फ एक देवता नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला का प्रतीक हैं। आइए, उनके स्वरूप और कथाओं में छिपे उन रहस्यों को जानें, जो हमारे दुखों को कम कर सकते हैं। गणपति जी का स्वरूप: एक आध्यात्मिक पाठशाला गणपति जी का हर अंग हमें जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाता है। उनके विशाल कान हमें यह सिखाते हैं कि हमें दूसरों की बातों को धैर्यपूर्वक सुनना चाहिए। जब हम सुनते हैं, तो हमें समस्याओं की जड़ तक पहुँचने में मदद मिलती है। उनकी छोटी आँखें हमे...

हर चेहरे पर मुस्कान है, पर दिल में उदासी क्यों?

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क्या आपने कभी महसूस किया है कि चारों तरफ खुशियाँ हैं, लोग मुस्कुरा रहे हैं, लेकिन आपके अंदर एक अजीब सा खालीपन या उदासी है? सोशल मीडिया पर हर कोई अपनी हँसती हुई तस्वीरें और सफलता की कहानियाँ शेयर कर रहा है। उनके प्रोफाइल देखकर लगता है जैसे उनकी ज़िंदगी परफेक्ट है – रोज घूमते हैं, स्वादिष्ट खाना खाते हैं, पार्टी करते हैं। लेकिन जब हम अपने अंदर झाँकते हैं, तो वहाँ वही बेचैनी और उदासी मिलती है। यही सवाल आज लाखों लोगों को परेशान करता है: "हर चेहरे पर मुस्कान है, पर दिल में उदासी क्यों?" हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ कनेक्टिविटी सबसे ज्यादा है, लेकिन असली जुड़ाव की कमी है। हमारे पास सैकड़ों ऑनलाइन दोस्त हैं, लेकिन जब किसी से दिल की बात करनी हो, कोई नहीं मिलता। यह विरोधाभास गहरा है।   1. खुशी का भ्रम: सोशल मीडिया की दुनिया सोशल मीडिया हमारी जिंदगी की सिर्फ "हाइलाइट रील" दिखाता है। वही पल जो अच्छे और खुशहाल होते हैं। कोई अपनी हार, संघर्ष या उदासी नहीं दिखाता। जब हम उनकी परफेक्ट ज़िंदगी देखते हैं, तो अनजाने में अपनी ज़िंदगी से उनकी तुलना करने लगते हैं: "अगर वह इतना ख...

शांत मन , क्रोध मुक्त जीवन : गुस्से पर विजय

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आध्यात्मिक रूप से देखा जाए तो गुस्सा सिर्फ एक नकारात्मक भावना नहीं है। यह अक्सर हमारे भीतर की बेचैनी और प्रतिरोध का संकेत होता है। जब चीजें हमारी उम्मीदों के अनुसार नहीं होतीं, या हम किसी व्यक्ति या घटना पर नियंत्रण खो देते हैं, तब गुस्सा उठता है। बौद्ध धर्म में इसे 'द्वेष' कहते हैं—तीन जहरों में से एक। हिंदू धर्म में इसे 'क्रोध' कहा जाता है और योग, ध्यान के माध्यम से इसे नियंत्रित करने की सिख दी गई है। असल में, गुस्सा बाहरी घटनाओं का परिणाम नहीं , बल्कि हमारी अपनी आंतरिक प्रतिक्रिया है। हम अपने भावनाओं के मालिक हैं, भले ही परिस्थितियों को बदल न सकें। यही समझ हमें जिम्मेदारी लेने और बदलाव की शक्ति का एहसास कराती है। गुस्से को छोड़ने के आध्यात्मिक तरीके 1. माइंडफुलनेस और ध्यान ध्यान हमें गुस्से को पहचानने और उससे दूरी बनाने का अवसर देता है। जब गुस्सा उठे, बस उसे महसूस करें: "मैं गुस्सा महसूस कर रहा हूँ।" इसे एक बादल समझें जो आकाश से गुजर रहा है। अभ्यास: * शांत जगह पर बैठें। * साँस पर ध्यान दें। * गुस्से को ‘मेहमान’ की तरह आने दें और फिर जाने दें। 2. आत्म-करुणा ...

सिर्फ़ शांति नहीं, समृद्धि भी: ध्यान का रहस्य

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क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन में सफलता और समृद्धि का रहस्य सिर्फ़ कड़ी मेहनत में नहीं, बल्कि हमारे मन की एक विशेष अवस्था में भी छिपा है? अक्सर हम धन और भौतिक संपत्ति के पीछे दौड़ते रहते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि हमारे विचार और भावनाएँ ही हमारे भविष्य का निर्माण करती हैं। यही कारण है कि ध्यान, सिर्फ़ मानसिक शांति का साधन नहीं बल्कि एक शक्तिशाली उपकरण है, जो हमारे मस्तिष्क को बेहतर निर्णय लेने, सकारात्मक सोच विकसित करने और आर्थिक लक्ष्यों की ओर सही दिशा में मार्गदर्शन करने में मदद करता है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि ध्यान करने से हमारा मन शांत होता है और नकारात्मक भावनाएँ जैसे डर, संदेह और चिंता कम होती हैं। यही भावनाएँ अक्सर हमें जोखिम लेने, नए अवसरों को पहचानने और बुद्धिमानी से निवेश करने से रोकती हैं। ध्यान हमें सिखाता है कि हम अपने विचारों और भावनाओं को नियंत्रित करने के बजाय उन्हें समझें, जिससे मानसिक स्पष्टता आती है और हम अपने आर्थिक लक्ष्यों पर अधिक फोकस कर पाते हैं। ध्यान के कई रूप होते हैं, लेकिन कुछ विशेष रूप से धन और समृद्धि को आकर्षित करने में प्रभावी हैं। उदाहरण के ल...

सफल या संतुष्ट , क्या होना है बेहतर ?

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जीवन की भागदौड़ में हम अक्सर खुद को एक ऐसी दौड़ में पाते हैं, जिसका कोई अंत दिखाई नहीं देता। यह दौड़ है सफलता की—जहाँ हम लगातार दूसरों द्वारा बनाए गए मापदंडों को पूरा करने की कोशिश करते रहते हैं। हम धन, पद और प्रसिद्धि के पीछे भागते हैं, यह मानकर कि यही हमें सच्ची खुशी देंगे। लेकिन सवाल यह है— क्या वास्तव में बाहरी सफलता ही संतुष्टि की कुंजी है? भारतीय संस्कृति हमें एक गहरी सीख देती है। यह कहती है कि असली जीवन वह नहीं है जो सिर्फ़ दूसरों की नज़रों में सफल दिखे, बल्कि वह है जो हमारी आत्मा और हमारे हृदय को शांति और तृप्ति दे। यही विचार हमें उस जीवन की ओर ले जाता है, जो दिखावे से नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन और पूर्णता से भरा होता है। सफलता और संतुष्टि के बीच फर्क समझना बेहद ज़रूरी है। सफलता अक्सर बाहरी उपलब्धियों से जुड़ी होती है—यह एक मंज़िल है जिसे पाकर हम थोड़ी देर के लिए गर्व महसूस करते हैं। लेकिन यह गर्व क्षणिक होता है, क्योंकि इसके बाद एक और बड़ी उपलब्धि की चाहत पैदा हो जाती है। इसके विपरीत, संतुष्टि एक आंतरिक अनुभव है। यह बाहरी चीज़ों पर निर्भर नहीं करती। यह तब पैदा होती है जब हम हर ...

शिकायतें, दूरियाँ और अकेलापन: जब रिश्तों में सब ख़त्म लगने लगे, तब आज़माएँ ये आध्यात्मिक तरीक़े

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हमारे जीवन की सबसे बड़ी दौलत हमारे रिश्ते हैं। चाहे वह परिवार के साथ हों, दोस्तों के साथ हों या जीवनसाथी के साथ—ये रिश्ते ही हमें खुशी और कठिनाइयों में सहारा देते हैं। लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अक्सर इन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हमें लगता है कि सिर्फ़ शब्दों या तोहफ़ों से सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन सच्चाई यह है कि ब्रह्मांड हमारे शब्दों से नहीं, हमारी भावनाओं से प्रतिक्रिया करता है। रिश्तों को गहरा और सच्चा बनाने के लिए हमें उनके आध्यात्मिक पहलू को समझना होगा। यह किसी जादू से नहीं, बल्कि खुद को बदलने की यात्रा से संभव होता है। रिश्तों को सुधारने का पहला कदम है स्वीकृति । जब हम किसी को वैसे ही स्वीकार करते हैं जैसे वह है, तो रिश्तों में अनावश्यक टकराव खत्म हो जाता है। अक्सर हम दूसरों को अपनी सोच के अनुसार बदलना चाहते हैं, और जब ऐसा नहीं होता, तो निराशा जन्म लेती है। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से हर आत्मा अद्वितीय है। सच्चा प्रेम वही है जो बिना जजमेंट और बिना अपेक्षा के स्वीकार करे। दूसरा कदम है क्षमा । पुरानी चोटों और शिकायतों को पकड़े रहना एक भारी बोझ है। माफ़ करना दूसरों को...

क्या डर आपकी ज़िंदगी बर्बाद कर रहा है?

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शायद आप यह लेख इसलिए पढ़ रहे हैं क्योंकि आपके मन में भी किसी बात का डर है। हो सकता है वह कल के एग्ज़ाम का डर हो, नौकरी खोने का डर हो या किसी अपने को खोने का। कभी-कभी हमें नया काम शुरू करने से भी डर लगता है, बस इसलिए कि मन में सवाल उठता है – “लोग क्या कहेंगे?”  या “अगर मैं फेल हो गया तो?” डर एक ऐसी भावना है जो हमें भीतर से छोटा और लाचार बना देती है। हम अक्सर डर से भागते हैं, उसे छुपाते हैं या उससे बचने के बहाने ढूंढते हैं। लेकिन क्या आपने कभी ठहरकर सोचा है कि डर असल में है क्या? क्या यह सचमुच उतना बड़ा है जितना हम उसे मान लेते हैं? सदियों पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें यह सिखाया था कि डर कोई वास्तविकता नहीं, बल्कि हमारे मन की रचना है। यह एक ऐसा भूत है जो सिर्फ़ भविष्य में रहता है। आज जब आप यह लाइन पढ़ रहे हैं, तो क्या इस पल में आपको डर महसूस हो रहा है? शायद नहीं। डर तो तब आता है जब हम भविष्य के बारे में सोचने लगते हैं – “अगर ऐसा हो गया तो?”  या “कल क्या होगा? ”। सच यही है कि वर्तमान क्षण में डर का कोई अस्तित्व नहीं होता। अगर आप ध्यान से देखें तो हर डर भविष्य की किसी कल्पना से ज...

चेतना का जागरण: स्वयं को खोजने की यात्रा

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जीवन एक निरंतर यात्रा है। हम सब इस सफ़र में बाहर की दुनिया में सफलता, खुशी और संतुष्टि ढूंढते रहते हैं। लेकिन कई बार इस दौड़-धूप में हमें भीतर एक अजीब-सा खालीपन महसूस होता है—एक ऐसा शून्य, जिसे कोई भी उपलब्धि या भौतिक वस्तु भर नहीं पाती। यही खालीपन हमें उस प्रश्न तक ले जाता है: “क्या जीवन का कोई और भी अर्थ है?”  और यहीं से शुरू होती है हमारी आध्यात्मिक यात्रा। अध्यात्म सिर्फ़ पूजा-पाठ या धार्मिक कर्मकांडों तक सीमित नहीं है। यह एक गहरी और व्यक्तिगत यात्रा है—स्वयं को समझने की, अपनी चेतना से जुड़ने की, और इस ब्रह्मांड के साथ अपने असली संबंध को महसूस करने की। अध्यात्म क्या है? सरल शब्दों में, अध्यात्म अपने भीतर झाँकने की कला है। यह उस आवाज़ को सुनने की क्षमता है जो हमारे विचारों और भावनाओं के शोर के पीछे छिपी रहती है। हम अक्सर भूल जाते हैं कि हम सिर्फ़ एक शरीर, एक नाम या एक नौकरी नहीं हैं। अध्यात्म हमें याद दिलाता है कि हम इससे कहीं अधिक हैं—हम ऊर्जा हैं, हम चेतना हैं, जो इस शरीर के माध्यम से अनुभव कर रही है। जब यह एहसास जागता है, तो हम समझते हैं कि हम सब एक ही विशाल चेतना के हिस्से ह...

अगर आप भी अपनी नौकरी, रिश्ते या भविष्य के बारे में सोचकर डरते हैं, तो यह आपके लिए है।

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क्या आपने कभी रात को बिस्तर पर लेटकर महसूस किया है कि आपका दिल तेज़-तेज़ धड़क रहा है और दिमाग में एक ही सवाल गूँज रहा है— “आगे क्या होगा?” वह नौकरी जो खतरे में है, वह रिश्ता जो एक नाज़ुक धागे पर टिका है, या वह सपना जो अब तक सिर्फ़ एक कल्पना है। यह है अनिश्चितता का डर— जो हमें भीतर से खाली और कमजोर बना देता है। हम बाहर से हँसते-मुस्कुराते हैं, सोशल मीडिया पर ज़िंदगी को परफेक्ट दिखाते हैं, लेकिन भीतर ही भीतर एक तूफ़ान चल रहा होता है। यही डर हमें वर्तमान के खूबसूरत पलों को जीने से रोक देता है। हम भविष्य को नियंत्रित क्यों करना चाहते हैं? हमारा दिमाग सुरक्षा के लिए बना है। पुराने समय में, हमारे पूर्वजों को हर पल खतरे का अंदेशा होना ज़रूरी था। आज भी वही प्रवृत्ति चल रही है— दिमाग लगातार भविष्य का अनुमान लगाता है ताकि हमें "सुरक्षित" रख सके। लेकिन आधुनिक जीवन में यही आदत हमें उलझा देती है। हम सोचते हैं कि सब कुछ नियंत्रित करके हम शांति पा लेंगे। मगर सच्चाई यह है कि जीवन एक नदी की तरह है— इसके बहाव को कोई नहीं रोक सकता। हम सिर्फ़ इसके साथ बहना सीख सकते हैं। और यही समझ हमें राहत देती...

सोहम :- प्राचीन ग्रंथों में बताई गई गुप्त ध्यान विधि

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क्या आप रोज़मर्रा के तनाव और मन की बेचैनी से थक चुके हैं? क्या आपको एक ऐसी तकनीक चाहिए जो तुरंत मन को शांत करे और भीतर स्पष्टता लाए? जवाब है — ** सोहम ध्यान **। यह कोई जटिल साधना नहीं है, बल्कि एक बेहद सरल और प्राचीन भारतीय अभ्यास है। सोहम का अर्थ है — “मैं वही हूँ” (I am That) । यह हमें याद दिलाता है कि हम ब्रह्मांड से अलग नहीं, बल्कि उसका ही हिस्सा हैं। सोहम ध्यान हमारी साँसों से जुड़ा है: जब हम साँस अंदर लेते हैं , तो मन में ध्वनि होती है — * सो * जब हम साँस बाहर छोड़ते हैं , तो मन में ध्वनि होती है — * हम * बस, इसी प्रक्रिया पर ध्यान करना ही सोहम ध्यान है। सोहम ध्यान कैसे करें? स्टेप 1: आरामदायक स्थिति में बैठें * एक शांत जगह चुनें। * रीढ़ सीधी रखें और कंधे ढीले छोड़ें। * आँखें धीरे से बंद कर लें। स्टेप 2: साँसों पर ध्यान दें * नाक से साँस अंदर लेते समय मन ही मन कहें — *सो*। * साँस बाहर छोड़ते समय कहें — *हम*। स्टेप 3: बस देखते रहें * मन कभी भटकेगा, लेकिन घबराएँ नहीं। * हर बार विचार आए, धीरे से वापस “सो… हम…” पर लौट आएँ। 👉 शुरुआत सिर्फ़ 5 मिनट से करें और धीरे-धीरे समय बढ़ाएँ। सोहम...

दुख और उसका सामना: एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण

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जीवन एक ऐसी यात्रा है जिसमें सुख और दुख दोनों हमारे साथ चलते हैं। सुख हमें हल्का और आनंदित करता है, जबकि दुख हमारे मन और आत्मा को गहराई से छू जाता है। कभी यह किसी प्रियजन के बिछड़ने से आता है, कभी हमारी अधूरी अपेक्षाओं से, तो कभी सिर्फ़ भीतर की बेचैनी से। भारतीय आध्यात्मिक दर्शन दुख को केवल बोझ नहीं मानता, बल्कि उसे आत्म-जागरूकता और विकास का एक अवसर मानता है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – “सुख-दुख समे कृत्वा...”  यानी सुख और दुख दोनों को समान भाव से देखो। यह हमें याद दिलाता है कि दुख स्थायी नहीं है, यह केवल एक क्षणिक अनुभव है। दुख का मूल कारण अक्सर हमारी आसक्ति और अपेक्षाएँ होती हैं। जब हम केवल सुख की तलाश में भागते हैं, तो दुख हमें अस्थिर कर देता है। लेकिन यदि हम इसे शिक्षक की तरह स्वीकारें, तो यह हमें जीवन और आत्मा के गहरे सत्य से जोड़ देता है। भारतीय दर्शन दुख को तीन रूपों में समझाता है—आधिदैविक (प्रकृति या ईश्वरीय कारणों से), आधिभौतिक (दूसरों या परिस्थितियों से), और आध्यात्मिक (भीतर की बेचैनी और अर्थहीनता से)। इन सबके साथ हमारी इच्छाएँ और उम्मीदें भी दुख को जन्म देती...

अगर आपके काम बार-बार बिगड़ जाते हैं तो यह मत करना

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  कभी सोचा है कि जब सब कुछ सही चल रहा होता है, तभी अचानक कोई काम क्यों बिगड़ जाता है? जैसे कि इंटरव्यू में आप पूरी तैयारी के साथ बैठे थे, सब ठीक लग रहा था, और अचानक रिजेक्ट हो गए। या कोई डील लगभग पक्की लग रही थी, और आखिरी पल में टूट गई। हम अक्सर कहते हैं, “यार, ये तो किस्मत थी।” लेकिन सच कहूँ तो इसके पीछे एक गहरा कारण है—और वो है हमारी अपनी नज़र। हाँ, वही नज़र जो हम अपने मन में किसी चीज़ को हासिल करते-करते बार-बार जश्न मनाने लगते हैं। “बस अब तो ये मेरा है,” या “मैं जीत चुका हूँ”—ऐसे विचार अक्सर दिमाग में घूमते रहते हैं। और यहीं पर हम गलती कर देते हैं। देखो, ब्रह्मांड हमारी भावनाओं पर प्रतिक्रिया करता है, सिर्फ़ हमारे शब्दों पर नहीं। जब तक कोई काम पूरा नहीं होता, तब तक उसकी सफलता को पहले ही मान लेना, उसके रास्ते में अड़चन बन सकता है। ये कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि ऊर्जा का नियम है। इसलिए जब भी आप किसी काम के बहुत करीब हों, तो थोड़ी धीरज रखो। अपनी खुशी को थोड़ा पीछे रखो और अपनी पूरी ऊर्जा उस काम को पूरा करने में लगाओ। मन को शांत रखो, और जब तक काम पूरा न हो जाए, दूसरों से इसके बारे में...

ज़िंदगी की सबसे बड़ी दौड़: हम क्यों हार रहे हैं?

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हम सब एक दौड़ में भाग रहे हैं। बचपन में स्कूल में अच्छे नंबर लाने की दौड़, फिर कॉलेज में बेस्ट जॉब पाने की दौड़, और फिर बड़ी गाड़ी, बड़ा घर, ऊँची सैलरी और समाज में अपनी पहचान बनाने की दौड़। हम अक्सर सोचते हैं कि जब यह सब हासिल कर लेंगे, तभी हमारी जिंदगी पूरी हो जाएगी, तभी हमें सच्ची खुशी और संतोष मिलेगा। लेकिन ज़रा सोचिए, क्या ऐसा सच में होता है? क्या आपने कभी महसूस किया है कि कोई बड़ा लक्ष्य हासिल करने के बाद भी, वह खुशी सिर्फ़ कुछ ही समय के लिए रहती है, और फिर वह खालीपन या बेचैनी लौट आता है? दरअसल, इसका कारण यह है कि हम ग़लत दौड़ में हैं। हम हमेशा बाहर की दुनिया में जीत की तलाश करते हैं—दूसरों से बेहतर होने की, दूसरों को पछाड़ने की, और दूसरों की नजरों में ऊँचा उठने की दौड़ में। पर सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण दौड़ हमारे अंदर चल रही होती है। यह दौड़ है अपने मन, अपनी असुरक्षा, अपने डर और अपने अहंकार से जीतने की। यही वह दौड़ है जिसे अगर हम जीत लें, तो हमें स्थायी और गहरी खुशी, शांति और संतोष मिलता है। जब हम सिर्फ़ बाहरी दौड़ पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम अंदर की दौड़ में पीछे रह जात...

अहंकार : आपका सबसे बड़ा दुश्मन या सबसे अच्छा दोस्त ?

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अहंकार,  यह शब्द सुनते ही अक्सर हमारे दिमाग में नकारात्मक छवि उभरती है। हम इसे उस बोझ की तरह समझते हैं जो हमें दूसरों से बेहतर दिखने, हमेशा सही साबित होने और हर परिस्थिति पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए मजबूर करता है। लेकिन क्या यह सच में हमेशा बुरा है? ज़रा सोचिए, अगर आपको आत्मविश्वास और अपनी पहचान बनाए रखने की शक्ति न मिले, तो आप कैसे निर्णय लेंगे, कैसे अपने जीवन में आगे बढ़ेंगे? अहंकार का एक सकारात्मक पहलू भी है—यह हमें आत्मविश्वासी बनाता है, हमें अपनी काबिलियत पर भरोसा देता है और मुश्किल परिस्थितियों में हमें टिके रहने की ताकत देता है। समस्या तब शुरू होती है जब यह अति में चला जाता है। तभी अहंकार न केवल दूसरों से हमें दूर कर देता है, बल्कि अपने आप से भी हमें अलग कर देता है। असली सवाल यह नहीं है कि अहंकार को पूरी तरह खत्म कैसे किया जाए, बल्कि यह है कि उसे समझदारी से कैसे नियंत्रित किया जाए, ताकि वह आपका दोस्त बने, दुश्मन नहीं। अहंकार का नियंत्रण करना कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है, लेकिन इसके लिए ईमानदारी, आत्म-निरीक्षण और छोटे-छोटे अभ्यासों की जरूरत होती है। सबसे पहला कदम है—अपनी आलोचन...

शांति की खोज: 3 आसान तरीक़े जो आपके जीवन को बदल सकते हैं

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आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हम सभी शांति और सुकून की तलाश में हैं। हर दिन हमें काम का दबाव, रिश्तों की जिम्मेदारियाँ और भविष्य की चिंता घेरे रहती हैं। हम में से कई लोग यह सोचते हैं कि शांति पाने के लिए किसी बड़े बदलाव या कठिन साधना की जरूरत है, लेकिन सच यह है कि स्पिरिचुअलिटी कोई जटिल रास्ता नहीं है। यह आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में छोटे-छोटे बदलाव लाने से शुरू होती है। बस थोड़ी जागरूकता, थोड़ी आदतें और थोड़ा समय देने की ज़रूरत है। जब आप इन चीज़ों को अपनी दिनचर्या में शामिल करते हैं, तो धीरे-धीरे आपका मन शांत होता है, तनाव कम होता है, और आप अपने जीवन के छोटे-छोटे सुखों को महसूस करने लगते हैं। सबसे पहला और आसान तरीका है —रोज़ाना 5 मिनट ध्यान करना। आपको घंटों तक बैठने की जरूरत नहीं है। बस किसी शांत जगह पर आराम से बैठ जाएँ, अपनी आँखें बंद करें और अपनी साँसों पर ध्यान दें। अपनी साँसों को अंदर आते और बाहर जाते हुए महसूस करें। शुरू में आपका मन बहुत भटकेगा, और यह बिलकुल सामान्य है। जब भी कोई विचार आए, उन्हें सिर्फ़ देखें और फिर धीरे से अपना ध्यान वापस अपनी साँसों पर लाएँ। यह छोटा सा अभ्यास ...